त्वचा रोग विभाग की प्रमुख डॉ. स्वास्तिका सुविर्या ने कहा, “प्रदूषण, कीटनाशक और खराब खान-पान भी त्वचा की परेशानी के प्रमुख कारक हैं. विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार दवा लेना अच्छा है.”
पैथोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. यू.एस. सिंह ने त्वचा रोगों के निदान में पैथोलॉजी की भूमिका के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि त्वचा रोग एवं पैथोलॉजी विभागों के समन्वित प्रयास से निदान और उपचार में बेहतर परिणाम मिलते हैं।
स्किन लाइटनिंग क्रीम का डार्क साइड
केजीएमयू के त्वचा विज्ञान विभाग की फैकल्टी डॉ. पारुल वर्मा ने 20 साल की एक लड़की का उदाहरण दिया, जिसके चेहरे के करीब चार महीने पहले त्वचा का रंग फीका पड़ गया था।
वह एक मेडिकल स्टोर पर गई, जिसने त्वचा को गोरा करने वाली स्टेरॉयड-आधारित क्रीम दी। उसने तीन महीने तक इसका इस्तेमाल किया लेकिन सुधार के बजाय घाव में बदल गया।
केजीएमयू के डॉक्टरों ने पता लगाया कि वह कुष्ठ रोग से पीड़ित थी, जिसकी पुष्टि बायोप्सी के जरिए की गई।
डॉ. वर्मा ने बताया, “स्टेरॉयड क्रीम से हुए नुकसान को ठीक करने में लड़की को अब महीनों लगेंगे। उसका इलाज आसान होता, अगर उसने स्टेरॉयड का इस्तेमाल नहीं किया होता।”
उसने कहा कि ऐसे कई लोग हैं जो फंगल संक्रमण, सोरायसिस के बाद खुजली वाली त्वचा पर दाने और मुंहासों जैसी समस्याओं के लिए बिना किसी चिकित्सक के नुस्खे के स्टेरॉयड-आधारित क्रीम लेते हैं।
अकेले केजीएमयू में रोजाना ओपीडी में आने वाले 400 मरीजों में से 50 प्रतिशत क्रीम का अंधाधुंध प्रयोग कर उनकी हालत बिगड़ने के बाद आते हैं.
केजीएमयू के डर्मेटोलॉजी विभाग की प्रमुख प्रो. स्वास्तिका सुवीर्य ने कहा, ‘हो सकता है कि कुछ मरीज ऐसे हों, जिन्हें फिलहाल राहत मिल जाए, लेकिन लंबी अवधि में ये दवाएं गंभीर रिएक्शन देती हैं और एलर्जी, अल्सर, ट्यूमर और संक्रमण का कारण बन सकती हैं।’