प्रकृति ने हमें जो भी खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराये हैं, हम उनका शाकाहारी रूप में ही सेवन करते हैं। हालाँकि, हिंदू धर्म पूजा और उपवास के दौरान कई शाकाहारी वस्तुओं के सेवन पर रोक लगाता है। इनमें लहसुन और प्याज भी शामिल हैं, जो धरती में उगते हैं लेकिन सनातनी इन्हें तामसिक भोजन मानते हैं।
आप कोई साधना करते हैं, व्रत रखते हैं या किसी बड़े उत्सव पर अनुष्ठान करते हैं या किसी यज्ञ में बैठते हैं। इस दौरान पंडित या पुरोहित आपको लहसुन और प्याज का सेवन न करने की सलाह देते हैं। लेकिन ऐसा क्यों कहा जाता है और इसके पीछे क्या कारण है? आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषाचार्य पंडित योगेश चौरे से।
आपको बता दें कि शास्त्रों में भोजन को तीन श्रेणियों में बांटा गया है। इनमें पहला है सात्विक, दूसरा है राजसिक और तीसरा है तामसिक भोजन। इसके संबंध में प्राचीन भारत में कहा जाता था कि ”जैसा खाओगे, वैसा बनेगा मन” इसका मतलब यह है कि आप जैसा भोजन करते हैं उसका प्रभाव आपके जीवन और आपके मन पर पड़ता है।
राजसिक भोजन
जिस भोजन में बहुत अधिक मसाले हों और उसमें मांसाहारी भोजन भी शामिल हो, उसे राजसिक भोजन कहा जाता है। इसमें केसर, मिर्च-मसाले से लेकर अंडे और मछली जैसे मांसाहारी भोजन तक सब कुछ शामिल है।
सात्विक भोजन
ऐसे खाद्य पदार्थ खाने से जो आपके रक्त प्रवाह को बढ़ाते या घटाते हैं, तामसिक भोजन कहलाते हैं। इसे स्वीकार करने से विलासिता की भावना के साथ-साथ क्रोध, गर्व, उत्तेजना भी आती है। लहसुन और प्याज इसी श्रेणी में आते हैं। इसलिए सलाह दी जाती है कि किसी भी पूजा, व्रत या धार्मिक अनुष्ठान के दौरान इन दोनों का सेवन न करें। क्योंकि पूजा के दौरान मन का शांत होना और दया का भाव होना जरूरी है।