कोल्हापुर, महाराष्ट्र: आमतौर पर जम्मू और कश्मीर की ठंडी वादियों में उगने वाले स्वादिष्ट सेब अब कोल्हापुर जिले के यालगुड गांव में भी ताजगी के साथ मिल रहे हैं। यह करिश्मा किया है अनिल मंगवे ने, जिन्होंने प्राकृतिक खेती और जज़्बे के दम पर इस असंभव को संभव कर दिखाया।
आधा एकड़, लेकिन अनोखा प्रयोग
अनिल मंगवे ने हत्कानंगले तालुका स्थित अपने महज आधे एकड़ खेत में 50 सेब के पेड़ लगाए। इसके साथ ही उन्होंने केसर आम, पेरू, चिकू, शेवगा, प्याज और लहसुन जैसी अन्य फसलों की भी इंटरक्रॉपिंग की। उनकी यह बहु-फसली पद्धति बेहद सफल रही और अब यह मॉडल स्थानीय किसानों के लिए प्रेरणा बन चुका है।
सोशल मीडिया बना शिक्षक
सातवीं तक पढ़े मंगवे ने कृषि की शिक्षा इंटरनेट और सोशल मीडिया से ली। उन्होंने सेब की खेती के लिए जलवायु, खाद, सिंचाई और उर्वरकों का गहराई से अध्ययन किया। यूट्यूब और अन्य प्लेटफार्मों पर वीडियो देखकर उन्होंने सेब की खेती का बारीकी से अवलोकन किया और उसे अपने खेत में लागू किया।
जैविक पद्धति से बढ़ाया भरोसा
मंगवे ने जैविक खेती का मार्ग चुना। उन्होंने पौधों को गोबर की खाद से तैयार किया और सिंचाई को नियंत्रित करके पेड़ों को प्राकृतिक तौर पर फलने का मौका दिया। दिसंबर से पानी रोक कर उन्होंने मार्च में फलों की शुरुआत की और अप्रैल-मई में पहली फसल तैयार हो गई।
गुणवत्ता में कश्मीर जैसे सेब
हर पेड़ से औसतन 30-35 सेब मिल रहे हैं और एक पेड़ से करीब 5 किलो उपज हो रही है। इन सेबों का स्वाद, आकार और रंग कश्मीर के सेबों के समान है, जिससे बाजार में इनकी अच्छी मांग देखी जा रही है।
स्थानीय किसानों को मिल रही प्रेरणा
अनिल मंगवे की इस अनोखी सफलता की चर्चा पूरे पंचक्रोशी क्षेत्र में हो रही है। अब आस-पास के गांवों के किसान उनके बगीचे का दौरा कर रहे हैं और सेब की खेती के बारे में मार्गदर्शन ले रहे हैं। मंगवे के पास कुल तीन और आधा एकड़ जमीन है, जिसमें तीन एकड़ में गन्ना और आधे एकड़ में उन्होंने यह नवाचार किया है। परिवार के सहयोग से उन्होंने अपने खेत को सफलता की कहानी में बदल दिया।
यह कहानी साबित करती है कि अगर जज़्बा हो, तो सीमाएं सिर्फ शब्द बनकर रह जाती हैं। अनिल मंगवे ने सिर्फ एक प्रयोग नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के किसानों को एक नई दिशा दी है।