महाराष्ट्र स्थित किसान संगठन शेतकारी संघटना ने हाल ही में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के समक्ष एक महत्वपूर्ण शिकायत दर्ज कराई है। संगठन के अध्यक्ष रघुनाथ पाटिल ने राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स लिमिटेड (RCF) पर किसानों और डीलरों को जबरन अतिरिक्त उर्वरक उत्पाद खरीदने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया है।
क्या है पूरा मामला?
शिकायत में कहा गया है कि आरसीएफ यूरिया की बिक्री को अन्य उत्पादों के साथ जोड़कर किसानों और डीलरों को अनावश्यक खरीददारी के लिए बाध्य कर रहा है। यह “टैगिंग” या “बंडलिंग” नामक व्यापारिक रणनीति है, जो भारत के प्रतिस्पर्धा कानूनों का उल्लंघन कर सकती है।
रघुनाथ पाटिल ने बताया, “मैंने स्थानीय खुदरा विक्रेताओं से बात की, जिन्होंने बताया कि कंपनियां उन्हें जबरन अतिरिक्त उत्पाद उठाने के लिए मजबूर कर रही हैं, जबकि वे आगे के वितरण के लिए रासायनिक उर्वरक भेजते हैं।”
सरकार की नीतियों के खिलाफ?
आरसीएफ का दावा है कि यह नीति मिट्टी में सुधार और उर्वरकों के संतुलित उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए अपनाई गई है। हालांकि, किसानों का कहना है कि यह अनुचित और प्रतिस्पर्धा-विरोधी रणनीति है, जिससे उनकी लागत बढ़ रही है।
किसान संगठन का यह भी कहना है कि 2022 में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों (महाराष्ट्र और पंजाब) ने जबरन उर्वरक बिक्री को लेकर चिंता व्यक्त की थी। लेकिन इसके बावजूद, आरसीएफ ने इस नीति को जारी रखा है। जून 2024 में उर्वरक कंपनियों की एक आंतरिक बैठक में भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी, लेकिन समस्या बरकरार रही।
किसानों के लिए क्या हैं नुकसान?
- अनावश्यक वित्तीय बोझ: किसानों को उन उत्पादों के लिए भुगतान करना पड़ता है, जिनकी उन्हें आवश्यकता नहीं होती।
- प्रतिस्पर्धा पर असर: अन्य उर्वरक कंपनियों के लिए बाजार में प्रवेश करना कठिन हो जाता है।
- कृषि उत्पादन लागत में वृद्धि: किसानों के लिए कृषि लागत बढ़ने से उनकी आर्थिक स्थिति प्रभावित हो सकती है।
आरसीएफ की बाजार स्थिति और प्रभाव
आरसीएफ 75% सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी है और इसे हाल ही में “नवरत्न” का दर्जा दिया गया है। महाराष्ट्र में यूरिया की 40% से अधिक आपूर्ति इसी कंपनी के द्वारा की जाती है।
शिकायत में दावा किया गया है कि इस बाजार प्रभुत्व के कारण आरसीएफ किसानों और डीलरों पर अनुचित प्रभाव डालता है, जिससे वे बिना अतिरिक्त खरीदारी किए यूरिया नहीं ले सकते।
CCI की संभावित कार्रवाई
शेतकारी संघटना ने प्रतियोगिता अधिनियम, 2002 की धारा 3 और 4 के तहत शिकायत दर्ज की है। यदि CCI इस मामले की जांच करता है और आरोप सही साबित होते हैं, तो आरसीएफ पर कड़ा जुर्माना लगाया जा सकता है या उसे अपनी नीतियों में बदलाव करने के निर्देश दिए जा सकते हैं।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला भारत के उर्वरक वितरण प्रणाली को पूरी तरह बदल सकता है और किसानों को राहत मिल सकती है।
आगे क्या?
अब सबकी नजरें CCI पर टिकी हैं कि वह इस शिकायत पर क्या कार्रवाई करता है। यदि जांच शुरू होती है और आरसीएफ दोषी पाया जाता है, तो इससे कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा और किसानों को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार उर्वरक खरीदने की स्वतंत्रता मिलेगी।